जयपुर : चंबल में इन दिनों जीवन के अंकुर फूटते दिखाई दे रहे हैं. कल कल बहती चंबल नदी के किनारों पर मिट्टी में सफेद चमकीले अंडों से घड़ियाल के बच्चों को निकलते देखना पर्यटकों को आनंद से सराबोर कर रहा है. चंबल घड़ियाल सेंचुरी की बढ़ती लोकप्रियता के ग्राफ के बीच वहां सुविधाओं का विकास पर्यटकों को बरबस ही अपनी और आकर्षित कर रहा है.
- चंबल घड़ियाल सेंचुरी में फूटने लगी नवजीवन की कोपल
- पालीघाट क्षेत्र में घड़ियाल की हैचिंग शुरू
- करीब 20-22 नेस्टिंग, अभी 2 नेस्टिंग में हैचिंग
- मगरमच्छों की भी 4-5 जगह नेस्टिंग, 10 जून के बाद हैचिंग संभावित
- अंडों से घड़ियाल के बच्चों को निकलता देख पर्यटक हो रहे रोमांचित
- नेस्टिंग से बेबी कॉल सुन मादा घड़ियाल निकालती है अंडों से बच्चे
चंबल नदी में राजस्थान वाले हिस्से में इस बार घड़ियालों का प्रजनन ज्यादा हुआ है. करीब 20 से 22 नेस्टिंग प्वाइंट पर 20 से अधिक मादा घड़ियालों ने सैकड़ों की तादाद में अंडे दिए हैं जिनसे बच्चे निकल रहे है. नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी के फील्ड डायरेक्टर अनूप के आर का कहना है कि यहां प्रजनन हर साल होता है, लेकिन इस बार खास यह रहा है कि नदी के मध्यप्रदेश वाले हिस्से में नेस्टिंग प्वाइंट कम है. 3 वर्ष पहले नदी में आई बाढ़ के कारण ये हालात बने हैं.
24 अगस्त 2022 को चंबल ने बहाव का 27 साल पुराना रिकार्ड तोड़ा था. भारत के मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थित दो प्रमुख पर्यटक स्थल, चंबल पालीघाट घड़ियाल सेंक्चुरी और रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, अब एक नई पहल से आपस में जुड़ सकते हैं. वन विभाग इन दोनों स्थानों के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने और जलीय जीवों के संरक्षण के लिए एक नया कम्पोजिट टिकट सिस्टम लागू करने पर विचार कर रहा है. इस कदम से न केवल दोनों स्थानों के बीच पर्यटन की कड़ी जुड़ने की संभावना है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और जलीय जीवन के प्रति जागरूकता भी बढ़ाएगा.
चंबल पालीघाट घड़ियाल सेंक्चुरी का महत्व:
चंबल पालीघाट घड़ियाल सेंक्चुरी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है और यह घड़ियालों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है. चंबल नदी क्षेत्र का यह हिस्सा जीव-जंतुओं और वन्य जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, जहाँ पर्यटकों को दुर्लभ जलीय जीवों का दर्शन होता है. यहाँ का प्रमुख आकर्षण घड़ियाल है, जो एक संकटग्रस्त प्रजाति है और पूरी दुनिया में इसकी संख्या कम होती जा रही है. इसके अतिरिक्त यहां मगरमच्छ, गंगा डॉल्फिन, ऊदबिलाव, सॉफ्ट शैल और हार्ड शैल टर्टल और विभिन्न पक्षियों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं, जो पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का कारण बनती हैं. चंबल नदी के साथ-साथ यहाँ के हरे-भरे वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य का आकर्षण पर्यटकों को खींचता है. यह स्थल पर्यावरण प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग के समान है.
घड़ियाल अभयारण्य के डीएफओ डॉ रामानंद भाकर का कहना है कि ऐसा लगातार तीसर्व वर्ष हुआ है कि मध्यप्रदेश के घड़ियाल क्षेत्र वाले चंबल के घाटों से ठीक सामने राजस्थान की सीमा में रेत पर भारी तादाद में घड़ियालों ने अंडे दिए हैं. बाढ़ से मध्यप्रदेश वाले हिस्से में नदी के घाटों पर रेत की गहराई कम हो गई थी. इस कारण घड़ियालों को अंडे देने के लिए वहां बजरी की पर्याप्त गहराई नहीं मिली और वे राजस्थान की सीमा में आ गए. नदी किनारे दोनों राज्यों के 50 प्रजनन केन्द्रों पर 140 मादाओं के घौंसले हैं. मध्यप्रदेश के देवरी में घड़ियाल केन्द्र नदी से हर साल करीब 200 अंड़े ले जाकर कृत्रिम प्रजनन कराता है. जबकि राजस्थान की सीमा में मादा घड़ियाल खुद ही बजरी में दबे अंडे फोड़कर बच्चों को पानी तक ले जाती है. रेंजर किशन कुमार सांखला ने बताया कि अभी 2-3 नेस्टिंग पॉइंट से हैचिंग चल रही है.
बाकी नेटिंग पॉइंट पर भी जल्द हैचिंग शुरू होगी. वहीं मगरमच्छों की भी 4-5 जगह नेस्टिंग है वहां 10 जून के बाद हैचिंग शुरू होने की संभावना है. दरअसल यहां रेत में मादा अप्रेल व मई में 30 से 40 सेमी गहरा गड्ढा खोदकर 50 से 70 तक अंडे देती है. मादा अंडों के ऊपर बैठकर इनका सेक करती हैं. अंडे पककर तैयार हो जाते हैं, तब गड्ढे के अंदर से मदर कॉल सुनकर मादा घड़ियाल पंजों से अंडे निकालती है. इन्हें फोड़कर बच्चों को पानी तक ले जाती है. पर्यटकों को अंडों से निकलते घड़ियाल के बच्चे देखना और फिर मादा घड़ियाल का अपने बच्चों को पीठ पर बिठाकर नदी में सवारी कराना बरबस ही आकर्षित करता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि यहां पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा होगा.