जयपुरः टेलीफोन ऑपरेटर से कैबिनेट मंत्री तक का सफर तय करने वाले अर्जुनराम मेघवाल का 1st इंडिया न्यूज के CEO एवं मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा ने KeyNote by Pawan Arora के तहत सुपर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया. जिसमें सीधे और सटीक सवालों का केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने जवाब दिया. अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि बुनकर परिवार और एक ऐसा मोहल्ला, जहां कोई पढ़ाई का वातावरण नहीं था. वहां मेरा जन्म होता है, लेकिन जहां तक मैं समझ पाता हूं कि अगर कोई व्यक्ति अच्छे संस्कार ग्रहण करे. चाहे वो परिवार में करे, चाहे स्कूल में करे, चाहे दोस्तों के साथ करे. अच्छे संस्कार ग्रहण करने की एक प्रकिया होती है, वो अगर ग्रहण कर ले तो उसका चरित्र मजबूत बन जाता है. इसीलिए मैं सारी परिस्थितियों में जहां पढ़ाई का वातावरण नहीं था, फिर भी मैं 10 वीं पास कर सका. उसके बाद बीकानेर आ गया और बीकानेर में मैंने 11वीं पास की. उसके बाद मैं डूंगरपुर आ गया, ये सब ग्रहस्थ जीवन के साथ चलता रहा.
पत्नी का संघर्ष… मेरी कहानी का सबसे खूबसूरत पन्ना!:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि 1968 में मेरी शादी हो गई थी. लेकिन जब मेरी शादी के 50 साल पूरे हुए तो मैंने अपनी पत्नी पर एक किताब लिखी. एक सफर हम सफर के साथ, वो बहुत प्रेरणा देने वाली किताब है. उसमें थोड़ा मेरे जीवन का पार्ट है, लेकिन अधिकांश भाग मेरी पत्नी का है. अब आपने इस विषय को छेड़ा है तो एक बार में बहुत प्रेस्टीजियस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में गया. और मैं उस समय ADM डवलपमेंट था बाड़मेर में, 1998 की बात है. वहां उसने एक लैबोरेस्ट्री रखी, पर्सेनलिटी डवलपमेंट की, ऐसे में ट्रेनिंग में भी जाता था. मेरी रुचि रही है, उसमें जो हमारे कलेक्टर थे आर.एन. अरविंद साहब, वो गए नहीं. तो उन्होंने मुझे डेप्यूट कर दिया, तो चीफ सेक्रेटरी ने कहा कि डेप्यूट से काम नहीं चलेगा. आपको छुट्टी जाना पड़ेगा और उनको कलेक्टर का चार्ज देना पड़ेगा. तो फिर मैं एक कलेक्टर के तौर पर प्रेस्टीजियस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में गया. उसमें 100 कलेक्टर थे पूरे देश के, उसमें तीन दिन का प्रोगाम था. जिसमें उन्होंने कहा कि हम आपको एक कॉपी देंगे, उसमें आपको एक नाम लिखना है. तो मेरे पास 3 घंटे थे, तो किसी ने पिता का नाम लिखा, किसी ने माता का नाम लिखा. तो किसी ने अपनी मेहनत के बारे में लिखा, मैं बैठा ही रहा, मैं अपनी पीछे की जिंदगी के बारे में सोचने लगा. तो इसके बाद 2.50 घंटे बीत गए, तो उन्होंने मुझे कहा कि ढाई घंटे बीत गए हैं मेघवाल साहब. आपको एक नाम लिखना है, मैंने उनको कहा कि मैं सोच रहा हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी में कई लोगों का योगदान था. और नाम एक लिखना था, तो मुझे एक दो रुपए की कहानी मेरी पत्नी की याद आई. जब मैं 11वीं में पढ़ता था तो मैं फुटबॉल खेलता था, तब एक मास्टर जी आए.
उन्होंने मुझसे कहा कि तुम 6 महीने से फुटबॉल खेल रहे हो, 2 रुपए जमा कराने होते हैं, तुमने कराए नहीं. तो मैंने कहा कि गुरूजी किसी ने बताया नहीं, तो फिर उन्होंने कहा कि कल 11 बजे तक ले आना. नहीं तो तुम्हारा नाम कट जाएगा, और जब मैं घर आया तो मेरे घर पर लाइट नहीं थी ना कुछ, पिता जी बाहर गए थे, तो मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा कि आप चिंता में क्यों हो ? तो मैंने कहा कि मुझे 2 रुपए चाहिए कल, तो पत्नी ने कहा कि 2 रुपए तो मैं मेहनत करके दे सकती हूं. लेकिन मुझे बाजार जाकर कुछ सामान लाना पड़ेगा, तो वो बाजार जाकर कुछ मोती के मणिए लेकर आई. चिमनी की रोशनी में उसने एक बंदरवाल बनाया और सुबह बाजार जाकर 10 बजे बेच दिया. फिर उन्होंने मुझे पैसे नहीं दिए तो मैंने सोचा कोई पैसे नहीं दे रहा, इसीलिए मैं अपनी TC लेने चला गया. लेकिन वहां मुझे मेरी पत्नी मिली, वहां उन्होंने मुझे दो रुपए दिए, इसका किताब में जिक्र भी है. लेकिन तब तक उन्होंने मेरी टीसी काट दी थी, मैंने गुरूजी को बताया कि मैं रुपए ले आया हूं. रुपए नए थे, तो गुरूजी ने रुपए देखकर मेरी टीसी वापस ले ली.
बात ये है कि जब इंस्टीट्यूट में नाम लिखने की बारी थी तो मैंने देखा कि सबका योगदान है. लेकिन मेरी पत्नी का योगदान सबसे ज्यादा है, तो मैंने पत्नी का नाम लिखा. श्रीमति पाना, देवी लिखा और फिर लंच हुआ तो पेपर आउट हुआ, तो उन्होंने मुझे खड़ा किया. जर्मन प्रोफेसर थे, उनको जब मैंने 2 रुपए की कहानी सुनाई तो उन्होंने कहा कि यू आर राइट मि. मेघवाल. और जब ट्रेनिंग खत्म हो रही थी तो उन्होंने कहा कि मि. मेघवाल कुछ लोग हैं. जो बोलते हैं कि मैं सफल बना मेरी पत्नी का योगदान है, लेकिन कुछ लोग बोलते ही नहीं हैं. बोलने वालों की संख्या भी 10-15 प्रतिशत ही है, लिखता कोई नहीं है मिस्टर मेघवाल, can you write. 1998 में मेरा उन्होंने हाथ पकड़ा था और जब मेरी शादी के 50 साल पूरे हुए. तो मैंने एक कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक समारोह किया, किताब का विमोचन कलराज मिश्र ने किया. तो मेरा जीवन थोड़ा संघर्षमय है, लेकिन अगर आप अच्छे संस्कार ग्रहण कर लोगे. तो आपका चरित्र मजबूत हो जाएगा, आप छोटी-मोटी चीजों से घबराओगे नहीं आप मंजिल पा लोगे.
जातिवाद का सामना किया, पर अच्छे लोग भी मिले:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि ऐसे कई अनुभव हैं, वो मेरी जीवनी आएगी उसमें है. ऐसे बहुत अनुभव हैं, लेकिन समाज में अच्छे लोग भी हैं. जो कहते हैं कि जाति-पाति का सिस्टम ठीक नहीं है. लेकिन कुछ लोग हैं जो इसको मानते हैं, और हमने भी इसको फेस किया है.
11 में सिर्फ एक तस्वीर 'नॉन वाइट'... वो थे बाबा साहब!:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि देखिए एक टॉपिक था भारत का संविधान और 75 वर्ष, इस पर हमको लेक्चर देना था. उसमें CJI साहब को भी लेक्चर देना था, उसमें सिस्टम ऐसा है कि वहां मंच नहीं होता है, सब नीचे बैठते हैं. सब प्रोफेसर होते हैं, ब्रिटिशर्स भी होते हैं, दूसरे देशों के, हमारे देशों के भी थे, हमारे मिशन के लोग भी थे, सभी लोग थे. उसमें आपको जब आपको बुलाया जाता है तब आपको लेक्चर देना होता है. तो वो मेरे लिए ऐतिहासिक भी था, भावुक करने वाला पल भी था. जहां बाबा साहब को ग्रेज इन हॉल में बैरिस्टर की उपाधि दी, वहां मैं खड़ा होकर भाषण दे रहा हूं. CJI भी भाषण दे रहे हैं, एक ही वर्ग से थे, तो हमारे लिए बेहद सुखद अनुभूति थी. मैं आपको एक चीज और बताता हूं ग्रेज इन हॉल की. उसमें शायद 11 तस्वीरें हैं और मैंने ये CJI B.R. गवई साहब को भी बताई, कि 11 पोट्रेट में 10 वाइट हैं. 1 नॉन वाइट है, वो हैं बाबा साहब अंबेडकर, ये भी हमारे लिए और भारत के लिए प्रसन्नता करने वाला क्षण था.
IAS से सांसद तक का सफर:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि कांग्रेस से ऑफर का विषय नहीं था, मैं जब कलेक्टर था तब मुझे हटा दिया गया. तब मैंने अशोक गहलोत साहब को बोला कि मुझे कलेक्टर क्यों हटाया? इससे मेरे पिताजी चिंतित हैं. उनको ये पता नहीं कि अब ये ट्रांसफर हो गया, वो बोले कि कलेक्टर हटा दिया, क्योंकि कोई गड़बड़ हुई होगी. मैंने कहा कि इसको करेक्ट करो और वो करेक्ट नहीं कर पाए. लेकिन भारतीय जनता पार्टी में मैं आया तो उसके पीछे एक लंबा इतिहास है. आपने सही कहा कि 1996 में, मुझे तो 2009 में टिकट मिली पहली बार. 1996 में भी मुझे टिकट दे रहे थे गंगानगर से, लेकिन मैंने कहा कि मेरे बच्चे छोटे हैं. उसके बाद भी मुझे टिकट का ऑफर आते रहे, 2004 में तो मैंने प्रयास भी किया था लेकिन टिकट नहीं मिली. 2009 में टिकट मिली, उसके पीछे एक ही कारण है कि एक तो मैं भारत विकास परिषद से लंबे वक्त से जुड़ा हुआ था. एक मैं स्वदेशी जागरण मंच से जो महेश जी शर्मा संचालित करते थे, सेवा भारती. इन संगठनों से जब मैं जुड़ा तो मेरे में राष्ट्र की भावना आई, उससे लोगों को लगा कि ये आदमी BJP के लिए उपयुक्त है. 2009 में एक विषय चला था, सरकार कांग्रेस की थी, हमारे यहां 2009 से पहले धर्मेंद्र जी थे. विषय चला कि ढूंढो, मैं तब तक IAS में था, मेरी चुनाव लड़ने की ज्यादा इच्छा नहीं थी. इसीलिए आपने कहा कि आपको सीधा टिकट दे दिया, तो मेरे सर्वे में लगा कि आप ट्रस्ट चलाते हो भावना मेघवाल मेमोरियल ट्रस्ट. जिसके चलते आपकी जो छवि है वो क्षेत्र में बहुत अच्छी है, इसीलिए आप टिकट ले लो. तो मैंने टिकट स्वीकार की, 2009 का चुनाव टफ था, सरकार कांग्रेस की थी. लेकिन बीकानेर की जनता ने 4 बार हम पर कृपा की. मैं इसके लिए बीकानेर की जनता का आपके माध्यम से आभार प्रकट करता हूं.
वन नेशन, वन इलेक्शन:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि आपने जिन कानूनों का जिक्र किया, उसमें एक चीज मैं एड करना चाहूंगा. नए संसद भवन का उद्घाटन होना था, 5 दिन का एक स्पेशल सेशन बुलाया गया था. किसी को पता नहीं क्या होने वाला है ? उस वक्त एक लंबे समय से अटका हुआ बिल था, जिसे हम सामान्य भाषा में 'वुमन रिजर्वेशन बिल' कहते थे. उसको पेश करने का अवसर मोदी जी ने दिया, वो मुझे ही दिया. बाद में वो बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हुआ, राष्ट्रपति जी के साइन हो गए. तो वो बिल कहलाया 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम'. ये पहला बिल नए संसद भवन में और वो भी बीकानेर के MP को अवसर मिला ये गौरव के क्षण थे. दूसरा वन नेशन, वन इलेक्शन उसको मैंने लोकसभा में पेश किया ये भी मैरे लिए गौरव का क्षण था. इस बिल में हमने एक सिस्टम रखा है कि जो लोकसभा का चुनाव होगा. उसके बाद एक अपॉइंटेड डेट तय की जाएगी, उसके आगे 5 साल की अवधि उस लोकसभा की फिक्स हो गई. उसके बीच में जितने भी चुनाव आएंगे उनकी अवधि स्वत: ही कम हो जाएगी. जैसे, यूपी या तमिलनाडु का चुनाव आ गया, 5 साल का चुनाव होना चाहिए था. लेकिन लोकसभा चुनाव की अवधि 3 साल ही है नहीं तो उनका चुनाव भी 3 साल का ही होगा. एक अनुमान है कि 2029 के बाद ही वो एक अपॉइंटेड डेट तय होनी है. तो 2034 का जो चुनाव होगा लोकसभा और विधानसभा का वो एक साथ हो जाएगा. अभी एक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी बनी है, पाली सांसद पीपी चौधरी उसके अध्यक्ष हैं. उन्होंने काफी बैठकें कर ली हैं, आज भी वो चंडीगढ़ में बैठक कर रहे हैं.
क्या पूरे देश में एक ही कानून होगा? UCC पर बड़ा खुलासा!:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि UCC पर चर्चा अभी से नहीं है, जब संविधान सभा में UCC पर चर्चा हुई थी. तो बाबा साहेब बी.आर. अंबेडकर साहब ने उसी समय कहा कि ये सही समय है कि हमारे देश में एक जैसा कानून हो. उन्होंने मुस्लिम समाज के कुछ लोग विरोध कर रहे थे उनको भी समझाया कि आप पर प्रॉपर्टी एक्ट लागू नहीं है. ऐसा क्यों कर रहे हो, लेकिन उस समय वो किसी कारणों से नहीं हो पाया. लेकिन, डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट में तो बाबा साहेब ने डाला. इसका मतलब राज्यों को ये निर्देश है कि UCC लागू होना चाहिए. इस दिशा में काम गोवा में सबसे पहले हुआ, गोवा में UCC लागू है, उसके बाद उत्तराखंड में अब ये Law Commission of India के पास सेंट्रल के हिसाब से एक मामला मैंडेट देकर उनके पास गया. और वो एक अपनी रिपोर्ट बना रहे हैं, तब तक राज्य अगुवाई कर रहे. वो बोले हम लागू कर रहे हैं वो लागू कर देंगे तो भी अच्छी बात है. Law Commission की रिपोर्ट आने के बाद हम इस पर बात करेंगे.
क्या अब SC में भी सब-कैटेगरी बनेगी?:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि कई राज्यों में अनुसूचित जाति वर्ग है, उसमें कुछ लोगों ने PIL दाखिल की थी. बोले हम संख्या में कम हैं और हमें रिजर्वेशन का पूरा लाभ नहीं मिलता. जैसे पंजाब में वाल्मिकी समाज के लोगों ने की, बिहार, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, में की गई. ये सभी मुद्दे और सभी PIL एक साथ सुप्रीम कोर्ट में आए. सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया, क्रीमीलेयर में तो उनका एक ऑब्जर्वेशन था. वो फैसले का पार्ट नहीं था, लेकिन शेड्यूल कास्ट में सब कैटेगराइजेशन हो सकता है ये फैसले का पार्ट था. राज्य सरकारें चाहें तो शेड्यूल कास्ट में सब कैटेगराइजेशन कर सकती हैं. ये उनको हक दिया तो कुछ राज्यों ने शुरू किया जिसमें हरियाणा एक है. आंध्रप्रदेश में तैयारी चल रही है बिहार भी तैयारी कर रहा है.
संविधान सबसे ऊपर है... फिर क्यों विवाद?:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि सप्रेशन ऑफ पावर का एक प्रिंसिपल कॉन्स्टिट्यूशन में ही दिया हुआ है. जब चर्चा होती है तो हम इस पर कहते हैं कि सबको अलग-अलग पावर है ना. सब अपने-अपने क्षेत्र में अपना काम करते हैं, कोई लेजिस्लेटिव विंग है संविधान का. कोई एग्जीक्यूटिव विंग है संविधान का, कोई ज्यूडिशरी विंग है, सब काम करते हैं. सबसे ऊपर संविधान तो है ही. इसमें झगड़ा किस चीज का, सबके पावर दिए हुए हैं.
ज्यूडिशरी क्या है, आयरन कर्टन में रहती है?:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि आपने एक शब्द यूज किया है 'व्यवहार'...जैसे में लॉ मिनिस्टर हूं. मेरा व्यवहार ठीक है तो ज्यूडिशरी का कोई आदमी हो, व्यवहार ठीक रखेगा ही. मेरे से इसमें कोई शक नहीं है, कानून बनाने का काम हमारा है, व्याख्या करने का काम उनका है.
क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सही सिस्टम है?:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि नहीं वो सिस्टम है, लेकिन वो इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी करके उन्होंने जो बेसिक स्ट्रेक्चर का पार्ट बनाया. 1973 के केशवानंद भारती केस में, तब से वो कह रहे हैं. ज्यूडिशियरी की इंडिपेंडेंस में एक्जीक्यूटिव के अपॉइंटमेंट में रोल नहीं होना चाहिए. लेकिन एक शब्द था कंसल्टेशन, इस शब्द को उन्होंने चेंज किया. लेकिन इन दिनों हमें लगता है कि हम चर्चा करते हैं. ये एक सिस्टम डवलप किया है. ये नाम आते हैं हाईकोर्ट से, उसके बाद हमारे यहां भी कुछ इंक्वायरी होती है. उसके बाद ये सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जाते हैं, वहां से आने के बाद हम नोटिफाइड करते हैं.
सरकारी प्लान से बदलेगा सिविल कोर्ट का हाल:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि आपने ये ठीक मुद्दा उठाया है, ये हमारी एक नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी है. जिसको हम करीब-करीब अंतिम रूप देंगे, उसका ये भाग है. अब मैं आपको थोड़ा पेंडेंसी कम करने के विषय में जो मोदी सरकार ने किया उसको मैं बताता हूं. तो जैसे पेडेंसी हैं, इसको कैसे कम किया जाए इसके लिए उन्होंने इवनिंग कोर्ट कंसेप्ट को लागू करने का प्रयास किया और सुप्रीम कोर्ट ने इसको माना भी है. तो अगर सुबह कोर्ट लग रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर वहीं है, शाम को भी कोर्ट लग जाए. एक संविधान में भी प्रावधान है कि हम रिटायर्ड जजों को भी एडहॉक जज बना सकते हैं. तो उस दिशा में भी एक प्रोपजल इलाहबाद कोर्ट से हमारे पास आया है. जैसे शुरू होगा, दूसरे हाईकोर्ट से भी आएगा, तो रिटायर जजों को भी हम काम दे सकते हैं. जो आपने वैकेंसी बताई है वो कम हो सकती है, तीसरा 1562 ऐसे कानून थे. जिनकी आवश्यकता नहीं थी, उनको हमने रिपील किया है, जो चौथा बड़ा काम है. जो हमने किया है कि वो है ADR ऑलटरनेट डिस्पोजल ऑफ रेजुलेशन का एक सिस्टम है. कि हम कैसे आर्बिट्रेशन, मीडिएशन और कंसीलेशन में हम काम करें. और आर्बिट्रेशन में ज्यादा चले जाएंगे, मीडिएशन, और कंसीलेशन में चले जाएंगे. आपने देखा होगा कॉमर्शियल कोर्ट हमारे बन गए, स्पेशलाइज कोर्ट बन गए. तो इसके बाद आपको पेंडेंसी कम नजर आएगी.
E-Court से तुरंत रिहाई! जेलों में कम होगी भीड़?
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि राष्ट्रपति एक जगह बोल रहीं थीं कि उनके सुझाव से ही इसके संबंध में कुछ चर्चा आगे चली है. मुझे लगता है कि इस दिशा में भी हमारा काम चल रहा है. एक बड़ा काम जो और हुआ है, पेंडेंसी कम करने का आपके ध्यान में ले आऊं. एक जुलाई 2024 को IPC-CRPC, जिसका आपने जिक्र किया. ये 1 जुलाई 2024 से न्यू क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम लागू हो गया. इसमें जो E-PRISON, E- PROSECUTION, E-COURT बना. इसका फायदा बहुत होगा, जैसे किसी जज ने फैसला दिया कि इस कैदी को मैं छोड़ता हूं. उसका ऑर्डर जाते-जाते जेल में 2 दिन लग जाते हैं, अब क्या होगा जब जज ऑर्डर जारी करेगा ? E-PLATFORM के माध्यम से वो E-PRISON पर पहुंच जाएगा. तो सुपरिटेंडेंट को पता लगा जाएगा कि ये कैदी छूट गया, ऐसे कुल 5 E-PORTAL बनाए हैं. वो effectively काम कर रहे हैं, ई-फॉरेंसिंग भी उसमें से एक है, तारीख निश्चित रूप से कम होगी.
IPC, CRPC, Evidence Act को क्यों बदला गया?
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि मैं इसकी थोड़ी HISTORY में लेकर जाता हूं, 1757 में PLASI का युद्ध हुआ, चेंजेज हुई. ठीक 100 साल बाद 1857 में उसके बाद 1858 में कोर्डिफिकेशन आया. 1757 का जो विषय था ना वो स्वतंत्रता संग्राम का हमारा आंदोलन था. अंग्रेजों ने इसे विद्रोह कहा, उन्होंने कहा कि भारतीयों ने विद्रोह कैसे कर लिया. तो वो दंड देने के लिए दंड संहिता लाए थे, उन्होंने कोर्डिफिकेशन 1858 से शुरू किया. उसमें बहुत पुराने कोर्डिफिकेशन थे, वर्तमान देशकाल परिस्थिति के अनुसार चीजें नहीं थीं. इसलिए नरेंद्र मोदी ने कहा कि अंग्रेजों को तो दंड देना था, इसलिए वो दंड संहिता लाए. लेकिन मोदी ने कहा कि मुझे न्याय देना है, इसलिए हम न्याय लेकर आए, ये कॉन्सेप्ट था. दंड न्याय का पार्ट है, उसमें चेंजेज भी हैं, अब जैसे ई FIR है. अभी क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को चेंज कर रह थे. रेल में फर्स्ट क्लास में यात्रा कर रही महिला का पर्स चोरी हो गया. वो थाने गई तो FIR दर्ज नहीं कर रहा था कोई. लेकिन तब किसी ने कहा कि जहां बैग चोरी हुआ उसी थाने में FIR दर्ज होगी. जबकि मुझे और उसे पता नहीं था कि बैग कहां चोरी हुआ है. अब नए कानूनों में वो घर जाकर FIR दर्ज करा सकती है. तो हमने 'इज ऑफ लिविंग' नागरिकों को दिया है.
जातिगत जनगणना पर सियासी घमासान!:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि जातिगत जनगणना में बहस की स्थिति नहीं है. सबसे पहले 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी, अंग्रेजों के जमाने में. उसके बाद कांग्रेस के शासन में ही ये कहा कि इसकी जरूरत नहीं है. 2012-13 में हमारा शासन नहीं था, इन्होंने जातिगणना कराई लेकिन आंकड़े जारी नहीं किए. और सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के नाते इन्होंने चीजें पेश कर दीं, ये खुद नहीं चाहते थे. अब कांग्रेस ने मुद्दा उठाया है, तो अब नरेंद्र मोदी ने निर्णय उठा लिया है. तो वो कह रहे हैं कि हमारे फॉर्मूलों के अनुसार करो, इसमें कौनसा फॉर्मूला होता है. इसमें परफॉर्मा होगा...और सेंसेस करने का सिस्टम है.
मेनिफेस्टो का जादू! राजस्थान में विकास की रफ्तार तेज:
अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि मैं प्रसन्नता से कह सकता हूं कि 70% से ऊपर हमारे मेनिफेस्टो को भजनलाल की सरकार ने लागू किया है. उसमें एक नया पॉइंट था, जिसको पहले किसी भी दल के मेनिफेस्टो में नहीं है. वो है 350 बिलियन डॉलर की इकॉनोमी का लक्ष्य था. ये ऐसा मुद्दा था कि लोग चाह नहीं रहे थे कि ऐसा होगा, जस्ट डबल था. लेकिन उसकी तरफ भी ये आगे बढ़े हैं, तो जैसे ही ये पूरा होगा, राजस्थान विकसित होगा. ये सारे हमारे मेनिफेस्टो के ही थे, काफी पार्ट उठाए हैं, हमने कई मीटिंग की थी. बीकानेर में भी कई काम हो रहे हैं, बीकानेर सोलर हब बन गया. अभी पोटाश निकला है, अभी प्रधानमंत्री आए थे, जहां मीटिंग की वहां नीचे कोयला है. उसको कहते हैं लिग्नाइट, एक नई टेक्नोलॉजी आई है, कोल गैसीफिकेशन की' 'जो हमारा लिग्नाइट का कोयला है, वो कोल गैसीफिकेशन के लिए उपयुक्त है, बीकानेर इंडस्ट्रियल हब गया.