रणथंभौर में 54 दिन में बाघ के हमले से 3 की मौत, टी-84 के शावकों की शिफ्टिंग के आदेश, देखिए खास रिपोर्ट

जयपुरः रणथंभौर टाइगर रिजर्व से लगते गांवों में बीते 54 दिनों में बाघ के हमले से तीन लोगों की दर्दनाक मौत के बाद वन विभाग ने बड़ी कार्रवाई की है. इन घटनाओं से उपजे जनआक्रोश और वन्यजीव-मानव संघर्ष की गंभीरता को देखते हुए अब रणथंभौर की बाघिन टी-84 के तीन शावकों को तत्काल ट्रांसलोकेट (स्थानांतरित) करने का निर्णय लिया गया है. इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) से विधिवत अनुमति प्राप्त कर ली गई है. 

राज्य की प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक शिखा मेहरा द्वारा जारी आदेश के अनुसार, इन तीन शावकों में से एक नर को धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व, एक मादा को रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व (बूंदी), और एक अन्य मादा को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (कोटा) में स्थानांतरित किया जाएगा. ट्रांसलोकेशन का यह फैसला आपात स्थिति को देखते हुए लिया गया है. आदेश में स्पष्ट किया गया है कि इन शावकों के व्यवहार में आक्रामकता और मानव-आबादी के करीब रहने की प्रवृत्ति सामने आई है, जिससे भविष्य में और संघर्ष की आशंका बढ़ गई थी. हाल ही में रणथंभौर से लगे इलाकों में बाघ द्वारा ग्रामीणों पर हमले की घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें तीन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे में विभाग ने समय रहते हस्तक्षेप कर यह अहम कदम उठाया है. वन विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि ट्रांसलोकेशन की पूरी प्रक्रिया राज्य वन विभाग की निगरानी में होगी और इसमें रेडियो कॉलरिंग, पशु चिकित्सा सुविधा, उचित दवाओं का प्रयोग तथा न्यूनतम आघात सुनिश्चित करने जैसी नौ प्रमुख शर्तें लागू रहेंगी.  

निगरानी भी की जाएगी सुनिश्चितः
किसी भी स्तर पर लापरवाही की स्थिति में अनुमति को निरस्त किया जा सकता है. एनटीसीए की ओर से 9 जून 2025 को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए आदेश में यह भी कहा गया है कि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) का सख्ती से पालन किया जाएगा. पूरी प्रक्रिया के दौरान और उसके बाद निरंतर निगरानी भी सुनिश्चित की जाएगी. इस ट्रांसलोकेशन को रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बढ़ते बाघों के दबाव और उनके आपसी संघर्ष को भी कम करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि रणथंभौर जैसे संरक्षित क्षेत्र में बाघों की बढ़ती संख्या के कारण अक्सर वे अपने मूल क्षेत्र से बाहर निकलते हैं, जिससे ग्रामीण आबादी खतरे में आ जाती है. वन विभाग के इस फैसले को मानव जीवन की सुरक्षा और बाघों के संरक्षण, दोनों के संतुलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है. स्थानीय लोगों ने भी इस पहल का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि इससे बाघों की सुरक्षा के साथ-साथ ग्रामीणों की जानमाल की रक्षा भी सुनिश्चित होगी.