जयपुरः लगातार चुनावी हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने संगठन में बड़े बदलाव करने का फैसला किया. इसके तहत 2025 को कांग्रेस संगठन मजबूती के साल के रुप में मना रही है. लेकिन फिर भी बदलाव की बयार काफी धीमे चल रही है. हटाने और नियुक्ति की प्रक्रिया किश्तों में हो रही है. हरियाणा में तो पिछले 8 माह से पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं हो पा रही है. इसके अलावा कईं अन्य राज्यों में भी कप्तान बदलने का काम पाइपलाइन में है. वहीं राजस्थान में भी संगठन दुरुस्ती का काम बेहद धीमे रफ्तार से चल रहा है.
लगातार तीन लोकसभा चुनाव और कई राज्यों में हारने के बाद कांग्रेस थिंक टैंक ने संगठन की सर्जरी करने का फैसला लिया. कर्नाटक में हुए अधिवेशन में बाकायदा संगठन मजबूती को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया. जिसके तहत मौजूदा 2025 साल को संगठन मजबूती के पर्व के रूप में मनाने का फैसला किया. जिसके तहत पहले एआईसीसी पदाधिकारियों में फेरबदल किया. साथ ही कईं राज्यों के प्रभारी भी बदले. लेकिन उसके बाद फेरबदल की कवायद काफी स्लो हो गई.
कांग्रेस में फेरबदल की कवायद की रफ्तार काफी स्लो
टीम खड़गे यानि AICC में हुई थी सबसे पहले बदलाव की शुरुआत
उसके बाद कुछ राज्यों में बदले गए थे पीसीसी चीफ
लेकिन फिर बदलाव की बयार हो गई धीमे
विवादित राज्यों में कांग्रेस हाईकमान अभी तक नहीं कर पाया कोई फैसला
हिमाचल,हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नहीं बदले गए पीसीसी चीफ
हरियाणा में 8 माह से आलाकमान नहीं पहुंचा किसी नतीजे पर
हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष की अब तक नहीं हो पा रही नियुक्ति
हिमाचल प्रदेश में भी सुक्खू औऱ प्रतिभा सिंह गुट के चलते मामला पेंडिंग
पंजाब में बदलाव को लेकर भी असमंजस बरकरार
वहीं कईं अन्य जगह भी बदलाव की प्रक्रिया पर अभी तक ब्रेक लगे हुए हैं. जैसे.यूथ कांग्रेस के नए राष्ट्रीय प्रभारी के अपॉइंटमेंट सहित कईं अग्रिम संगठन और विभागों में भी नियुक्तियां पेंडिंग पड़ी है. उधर बात राजस्थान कांग्रेस संगठन की करें तो यहां भी काम काफी धीमे रफ्तार से चल रहा है. नए जिलों में जिला अध्यक्ष बनाने औऱ निष्क्रिय जिला अध्यक्षों को हटाने का काम भी अभी कछुआ चाल से चल रहा है. वहीं पिछले पांच साल से भंग पड़े विभागों औऱ प्रकोष्ठों के गठन का अभी तक कोई अता पता नहीं है. इसके अलावा महिला प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी गठन भी पाइपलाइन में ही चल रही है. साथ ही पीसीसी फेरबदल का काम भी अधर में लटका नजर आ रहा है.
दरअसल कांग्रेस पार्टी में फैसले देरी से होना एक सदाबहार समस्या है. यहां तक कि टिकटों का फैसला नामांकन की आखिरी तारीख से पहले होता है. लेकिन जब मसला बुरे दौर में संगठन को फिर से खड़ा करने का है तो उसमें लेटलतीफी होना कांग्रेस रणनीतिकारों पर सीधा सवाल खड़ा करती है. हालांकि पार्टी ने तर्क दिया है कि गुजरात अधिवेशन औऱ फिर भारत-पाकिस्तान के टकराव के चलते जरुर इस काम में देरी हुई है. अब देखना है कि बिहार चुनाव से पहले हाईकमान इस टास्क को अंजाम दे पाता है या नहीं.