जयपुर: हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के पर्व का विशेष महत्व होता है. हिंदी कैलेंडर के अनुसार हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का त्योहार मनाया जाता है. अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है यानी इस दिन बिना मुहूर्त विचार के कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है. इस दिन सोने-चांदी से बने आभूषण की खरीदारी और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करने का विधान होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोने-चांदी की चीजों की खरीदारी से व्यक्ति के जीवन में खुशियां और धन संपदा हमेशा बनी रहती है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया 30 अप्रैल को है. पंचांग के अनुसार अबकी बार अक्षय तृतीया सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी. ज्योतिष में सर्वार्थ सिद्धि योग का सीधा संबंध मां लक्ष्मी से बताया गया है. इस शुभ योग में पूजा करने से मां लक्ष्मी आपकी हर इच्छा पूरी करती हैं. साथ ही इस योग में स्वर्ण आभूषण की खरीद करने से उसमें अक्षय वृद्धि होती है. इसे अक्षय तृतीया और आखा तीज कहा जाता है. इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है. ग्रंथों के मुताबिक इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी. इस दिन किया गया जप, तप, ज्ञान, स्नान, दान, होम आदि अक्षय रहते हैं. इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि अक्षय तृतीया विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त माना गया है. अक्षय तृतीया को आखा तीज भी कहा जाता है. अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. वैसे तो इस दिन बिना मुहूर्त निकाले शुभ कार्य, विवाह करना, सोना-चांदी खरीदना, नए कार्य करने से जैसे काम किए जा सकते हैं. इस दिन किए गए व्रत-उपवास और दान-पुण्य से अक्षय पुण्य मिलता है. अक्षय पुण्य यानी ऐसा पुण्य जिसका कभी क्षय (नष्ट) नहीं होता है. अक्षय तृतीया पर जल का दान जरूर करना चाहिए. साल में चार अबूझ मुहूर्त आते हैं. इन मुहूर्त में विवाह आदि सभी मांगलिक कार्य बिना शुभ मुहूर्त देखे किए जा सकते हैं. ये चार अबूझ मुहूर्त हैं - अक्षय तृतीया, देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी और भड़ली नवमी. ये चारों तिथियां किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया को एक शुभ मुहूर्त और महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है. अक्षय तृतीया के त्योहार को आखा तीज कहा जाता है. हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर यह पर्व मनाया जाता है. इस तिथि पर सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य किया जा सकता है. अक्षय तृतीया के दिन खरीदारी करना बेहद शुभ होता है. इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा है. इस दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. इसलिए इसे परशुराम तीज भी कहते हैं. इसी दिन भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया था.
अक्षय तृतीया
तृतीया तिथि आरंभ: 29 अप्रैल, सायं 05: 31 मिनट पर
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल,दोपहर 02:31 मिनट पर
उदया तिथि के अनुसार अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को मनाई जाएगी.
पितरों की तृप्ति का पर्व
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इसी दिन बद्रीनाथ धाम के पट खुलते हैं. अक्षय तृतीया पर तिल सहित कुश के जल से पितरों को जलदान करने से उनकी अनंत काल तक तृप्ति होती है. इस तिथि से ही गौरी व्रत की शुरुआत होती है. जिसे करने से अखंड सौभाग्य और समृद्धि मिलती है. अक्षय तृतीया पर गंगास्नान का भी बड़ा महत्व है. इस दिन गंगा स्नान करने या घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.
तीर्थ स्नान और अन्न-जल का दान
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस शुभ पर्व पर तीर्थ में स्नान करने की परंपरा है. ग्रंथों में कहा गया है कि अक्षय तृतीया पर किया गया तीर्थ स्नान जाने-अनजाने में हुए हर पाप को खत्म कर देता है. इससे हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं. इसे दिव्य स्नान भी कहा गया है. तीर्थ स्नान न कर सकें तो घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर नहा सकते हैं. ऐसा करने से भी तीर्थ स्नान का पुण्य मिलता है. इसके बाद अन्न और जलदान का संकल्प लेकर जरुरतमंद को दान दें. ऐसा करने से कई यज्ञ और कठिन तपस्या करने जितना पुण्य फल मिलता है.
दान से मिलता है अक्षय पुण्य
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि अक्षय तृतीया पर घड़ी, कलश, पंखा, छाता, चावल, दाल, घी, चीनी, फल, वस्त्र, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा और दक्षिणा सहित धर्मस्थान या ब्राह्मणों को दान करने से अक्षय पुण्य फल मिलता है. अबूझ मुहूर्त होने के कारण नया घर बनाने की शुरुआत, गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा जैसे शुभ कामों के लिए भी ये दिन खास माना जाता है.
भगवान विष्णु ने लिए कई अवतार
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि अक्षय तृतीया को चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है, क्योंकि इसी तिथि पर भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था. परशुराम जी चिरंजीवी माने जाते हैं यानी ये सदैव जीवित रहेंगे. इनके अलावा भगवान विष्णु के नर-नरायण, हयग्रीव अवतार भी इसी तिथि पर प्रकट हुए थे.