जयपुर: पद्मश्री से सम्मानित लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने एक सुपर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अपनी जीवन यात्रा और भारतीय लोक संगीत को सहेजने के अपने प्रयास की चर्चा की. 1st इंडिया न्यूज़ के सीईओ और मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा द्वारा लिए गए इस इंटरव्यू में मालिनी ने अपने शुरुआती जीवन से लेकर उनके गुरु-शिष्य परंपरा तक के अनुभव साझा किए. लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अपने बचपन और कन्नौज से लोक संगीत तक के सफर को साझा किया. उन्होंने बताया कि उनके ननिहाल कन्नौज को इत्र नगरी क्यों कहा जाता है. साथ ही उन्होंने अपने परिवार और उनके संगीत में गहराई से जुड़ाव के बारे में बात की. मालिनी अवस्थी ने गुरु-शिष्य परंपरा की गहराई साझा की. उन्होंने बताया कि कैसे उनके गुरु पद्म विभूषण गिरिजा देवी ने उनकी संगीत यात्रा को मील का पत्थर दिया. उन्होंने 'गंडा बंधन' की प्रक्रिया और उसके महत्व पर प्रकाश डाला.
कन्नौज से शुरुआत:
मालिनी अवस्थी ने कन्नौज के साथ अपनी बचपन की यादें साझा कीं. उन्होंने बताया कि कन्नौज को इत्र नगरी कहा जाता है क्योंकि यहां बेला और देशी गुलाब की खेती प्रमुख है. मेरा ननिहाल यही था, और यहीं मैंने जीवन की प्रारंभिक शिक्षा ली. इस भूमि पर जन्म लेना मेरे लिए सौभाग्य की बात है. भोजपुरी, अवधी, बुंदेली की लोक संस्कृति में अद्भुत साहित्य और महत्त्व छिपा है. इन्हें संरक्षण देना मेरी सबसे बड़ी जिद्द रही.
संगीत में रुचि का कारण:
मालिनी ने बताया कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य संगीत से जुड़ा नहीं था. लेकिन उनके पिता शास्त्रीय संगीत के अच्छे श्रोता थे. उन्होंने कहा कि मेरे पिता डॉक्टर थे, लेकिन वे शास्त्रीय संगीत के रिकॉर्डस खरीदते और सुनते थे. इस माहौल ने मुझमें संगीत के प्रति लगाव जगाया. रेडियो तब हर घर का हिस्सा था और भजन, लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत सुनना लोगों की जीवनशैली का हिस्सा था.
गिरिजा देवी से गंडा बंधन:
गुरु-शिष्य परंपरा पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि 1998 में उन्होंने गिरिजा देवी जी से सीखना शुरू किया. 9 साल की कड़ी मेहनत और उनकी परीक्षा के बाद 2006 में उनका 'गंडा बंधन' हुआ. इस रस्म के महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा में समय और धैर्य मायने रखता है. गुरु तब खुद तय करते हैं कि उनका शिष्य परिपक्व हो गया है. उन्होंने यह भी बताया कि गंडा बंधन के दौरान उन्होंने खमाज की ठुमरी गाई थी.
लोक संगीत के लिए गंभीर दृष्टिकोण:
लोक संगीत को लेकर फैली आम धारणा पर उन्होंने कहा कि बहुत लोग सोचते हैं कि लोकगीत गाना आसान है, पर असल में यह बहुत गहराई मांगता है. मैं चाहती थी कि लोगों को समझ आए कि लोकगीतों में शास्त्रीयता और साहित्यिक गहराई कितनी होती है.
राहत अली खां साहब के योगदान पर बात:
अपने दूसरे गुरु राहत अली खां साहब के बारे में उन्होंने बताया कि उन्होंने मुझे गजल से लेकर ठुमरी, दादरा और भोजपुरी गीतों तक की विधाएं सिखाईं. मेरे जो भी संगीत के विभिन्न पहलुओं में ज्ञान हैं, उसका श्रेय उन्हें ही जाता है.
लोक संगीत और शास्त्रीयता का संगम:
मालिनी अवस्थी ने कहा कि शास्त्रीय संगीत में रियाज करने के बाद लोक संगीत गाने का एक अलग अनुभव होता है. यह दोनों विधाओं को जोड़कर नई ऊंचाईयों तक ले जाता है. संगीत हमेशा ज्ञान और परंपरा सहेजने का माध्यम रहा है. गंडा बंधन गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्र रस्म है. इसमें गुरु, शिष्य को अपनी कला के प्रति समर्पण का प्रमाण देते हैं. इस प्रक्रिया में गुरु शिष्य को सबके सामने परखते हैं और जब वे संतुष्ट होते हैं तो गंडा बांधते हैं. मालिनी ने बताया कि कन्नौज की पहचान केवल इत्र से ही नहीं है, बल्कि यह इतिहास और संस्कृति का समृद्ध केंद्र रहा है. गंगा किनारे बसा यह शहर हर्षवर्धन की राजधानी रहा है, जिसने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को दिशा दी.
लोकगीतों को नई पहचान:
मालिनी अवस्थी ने बताया कि भारतीय लोकगीतों को अक्सर मनोरंजन के साधन के रूप में देखा जाता है. उन्होंने अपनी मेहनत से इस धारणा को बदलने का प्रयास किया. उनका कहना था, "लोकगीत केवल गायन नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और ज्ञान का साकार रूप हैं. इन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी है. मालिनी अवस्थी ने अपने गंडा बंधन के दिन को याद करते हुए कहा कि यह उनकी जिंदगी का सबसे खास दिन था. गिरिजा देवी के आशीर्वाद और बनारस के श्रोताओं की सहमति से उन्होंने यह सफलता अर्जित की. शास्त्रीयता और लोक गायकी के संगम से गीतों में गहराई आती है. भारतीयता के आदर्श स्वरूप को सुरक्षित रखना मेरा उद्देश्य है. शास्त्रीय संगीत में दक्षता ने मालिनी अवस्थी के लोकगीतों में गहराई और स्तरीयता जोड़ी. उन्होंने कहा कि लोकगीत सहज जरूर लगते हैं, पर इनके भीतर गहरे साहित्य और ज्ञान का समावेश होता है.
गिरिजा देवी और राहत अली खां का योगदान:
मालिनी अवस्थी ने बताया कि उनके गुरु राहत अली खां ने उन्हें संगीत की विविध विधाओं में निपुण किया. वे कहती हैं, “उस्ताद राहत अली खां साहब से मैंने ठुमरी से लेकर गजल, उर्दू और फारसी के बारीक पहलू सीखे. उनके आशीर्वाद ने ही मुझे आत्मविश्वास दिया. गिरिजा देवी ने उनके शास्त्रीय और ठुमरी गायन को निखारते हुए उनकी क्षमताओं को परखा और निखारा. मालिनी अवस्थी का मानना है कि भारतीय कला और परंपराएं केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि समाज को जोड़ने और ज्ञान के प्रचार का माध्यम हैं.मालिनी अवस्थी ने भारतीय संगीत की गहराई और इसकी विविधताओं को संरक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता को जोरदार तरीके से व्यक्त किया.