जयपुर: राजस्थान की विधानसभा में होनी है या अनहोनी.कभी भी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे.हाल ही में सात विधायक नव निर्वाचित हुए.इन घटनाओं के मद्देनजर विधानसभा पर अपशकुन की बात भी सामने आई. शायद इन्हीं सब अशुभ की बातों के कारण स्पीकर वासुदेव देवनानी ने वैदिक मंत्रोच्चार की परंपरा स्वस्ति वाचन को अपनाया और अपने कक्ष में इसे आहूत भी किया था. कुछ ने इसे शुद्धिकरण से भी जोड़ा,कहा जाता है इससे सभी देवी-देवताओं की उपासना की जाती है और सभी बुरे ग्रहों का शमन किया जाता. हालांकि फिर 199 का फेर विधानसभा पर मंडरा गया.कंवल लाल मीणा की विधायकी छिन जाने के बाद अंता सीट खाली हो गई.
यहां उपचुनाव होंगे.उल्लेखनीय है कि राज्य की नई विधानसभा में कभी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे! कुछ पूर्व विधायकों ने इस कारण विशेष पूजा अर्चना की मांग की थी.पूर्व मुख्य सचेतक कालू लाल गुर्जर और पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान ने सवाल खड़े किए थे.नई विधानसभा बनने से पहले श्मशान और कब्रिस्तान भूमि होने का दावा किया था बुरी आत्माओं के साए में विधानसभा इमारत होने की बात उठी थी.इन्हीं सब बातों के मद्देनजर स्पीकर देवनानी ने करवाया वैदिक मंत्रोच्चार और मंगल चारण करवाया था अर्थ ये हैं कि राजस्थान विधानसभा के मौजूदा भवन में कभी भी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे.
राजस्थान विधानसभा में 199 का फेर ! :
- पिछली गहलोत सरकार में भी उप चुनावो का इतिहास रहा था पंडित भंवर लाल शर्मा,किरण माहेश्वरी, मास्टर भंवरलाल मेघवाल,कैलाश त्रिवेदी का निधन हो गया था.
-इतिहास को जाने तो फरवरी 2001 के दौरान जब 11वीं विधानसभा का सत्र था विधानसभा की इमारत पुराने भवन से नए भवन में शिफ्ट हुई थी.
-25 फरवरी को तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन इसका उद्घाटन करने आने वाले थे जो बीमार होने की वजह से नहीं आ सके.
- आखिरकार बिना उद्घाटन के ही विधानसभा शुरु हो गई.
-इसके बाद नवंबर 2001 में इसका उद्घाटन हुआ तब से अब तक किसी ना किसी विधायक का निधन होता रहा है.
शुरुआती दौर में विधायक किशन मोटवानी ,जगत सिंह दायमा, भीखा भाई ,भीमसेन चौधरी, रामसिंह विश्नोई, अरुण सिंह ,नाथूराम अहारी चल बसे थे.
-वसुंधरा राजे के शासन के दौरान कल्याण सिंह चौहान, कीर्ति कुमारी, धर्मपाल चौधरी का विधायक पद पर रहते हुये निधन हो गया था.
-विधानसभा से अचानक विधायकों की गैर मौजूदगी की एक बड़ा कारण उपचुनाव रहे.
-समय समय पर कई विधानसभा क्षेत्रों को उपचुनाव का सामना भी करना पड़ा.
- फरवरी 2002 में किशन मोटवानी के निधन के बाद अजमेर पश्चिम में उपचुनाव हुए.
-दिसंबर 2002 में बानसूर विधायक जगत सिंह दायमा के निधन के बाद चुनाव हुआ.
-सागवाड़ा विधायक भीखा भाई के निधन बाद उपचुनाव हुआ.
-2005 जनवरी में लूणी विधायक रामसिंह विश्नोई के निधन के बाद उपचुनाव हुआ.
-2006 मई में डीग विधायक अरुण सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हुआ.
-2006 दिसंबर में डूंगरपुर विधायक नाथूराम अहारी के निधन के बाद उपचुनाव हुआ.
- 2017 में धौलपुर विधायक बीएल कुशवाह के जेल जाने के बाद वहां भी उपचुनाव हुए.
- 2017 में सितंबर के महीने में बीजेपी विधायक कीर्ति कुमारी के निधन के बाद मांडलगढ़ में उपचुनाव हुआ
- 21 फरवरी 2018 को बीजेपी विधायक कल्याण सिंह का भी निधन हो गया उसके बाद मुंडावर विधायक धर्मपाल चौधरी भी इस दुनिया में नहीं रहे.
पिछली सरकार के समय रामगढ़ उपचुनाव का सामना करना पड़ा:
-सहाड़ा,सुजानगढ़ , वल्लभनगर और राजसमंद के विधानसभा उप चुनाव भी हुए थे गहलोत सरकार के समय
- मौजूदा भजनलाल सरकार के समय खींवसर,चौरासी, देवली उनियारा, दौसा, झुंझुनूं के विधायकों के सांसद बनने का कारण उप चुनाव हुए.सलूंबर और रामगढ़ में स्थानीय विधायकों के निधन के कारण उप चुनाव हुआ था.
राजस्थान की पुरानी विधानसभा जयपुर के चारदीवारी के मानसिंह टाउन हॉल में चला करती थी, नई विधानसभा आधुनिक परिवेश के साथ नए जयपुर में बनाई गई.लेकिन विधानसभा में विधायकों की उपस्थिति हमेशा शंकाओं से घिरी रही. खुलकर विधायक भले ही अंधविश्वासों के बारे में बात नहीं करें लेकिन अंदरूनी तौर पर कानाफूसी के जरिए यह कहते रहते हैं की विधानसभा के भवन को शुद्धिकरण की जरूरत है.विधानसभा के मौजूदा सचिवों ने भी अपनी कुर्सी टेबल का मुंह वास्तु अनुसार बदला था.
विधायकों के फोटो सेशन में शायद कभी ऐसा हुआ हो जब पूरे विधायक एक साथ नजर आय़े हो.साफ है सदन में कुर्सियां 200 है मगर कभी भी 200 नहीं बैठ पाते.अंता विधायक कंवर लाल मीणा के लिए पुराना अपराधिक मामला बुरे सपने के समान रहा. प्रमोद जैन भाया जैसे कद्दावर को हराकर वे विधायक बने थे अब उनकी सीट पर फिर से उपचुनाव होगा.कंवर लाल मीणा को नई राजनीति पारी शुरू करने में समय लगेगा वहीं हाड़ौती के अंता को उप चुनावों का सामना करना होगा.