अंतर्राष्ट्रीय लेपर्ड दिवस पर विशेष रिपोर्ट: राजस्थान में 925 लेपर्ड, लेकिन संरक्षण की दरकार, जयपुर और प्रदेश में मानव-तेंदुआ संघर्ष बढ़ने की चेतावनी

जयपुर: अंतर्राष्ट्रीय लेपर्ड दिवस पर राजस्थान में तेंदुओं की स्थिति पर नजर डालना न केवल जरूरी है बल्कि चिंताजनक भी. राज्य में इस समय कुल 925 तेंदुए हैं, जिनमें से राजधानी जयपुर में ही 145 मौजूद हैं. यह संख्या वन्यजीवों की समृद्धि की एक तस्वीर तो दिखाती है, लेकिन इनके संरक्षण और प्रोटेक्शन के मोर्चे पर कई सवाल भी खड़े करती है. वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के 24 संरक्षित क्षेत्रों में 578 तेंदुए हैं, जबकि संरक्षित क्षेत्र के बाहर 41 अन्य क्षेत्रों में 347 तेंदुओं की उपस्थिति दर्ज की गई है. इसका सीधा संकेत है कि तेंदुए अब केवल जंगलों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों तक पहुँच चुके हैं. 

जयपुर सहित राज्य के 30 से अधिक जिलों में इनकी उपस्थिति दर्ज की गई है, जो भविष्य में मानव-तेंदुआ संघर्ष को और बढ़ा सकती है. गोगुंदा, उदयपुर से लेकर जयपुर के आमागढ़, नाहरगढ़, झालाना तक तेंदुओं और इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. इसका प्रमुख कारण है- कमजोर प्रे-बेस (शिकार की उपलब्धता) और जल प्रबंधन की कमी. गर्मी के दिनों में जल स्रोत सूखने पर तेंदुए आबादी वाले इलाकों की ओर रुख कर लेते हैं, जिससे टकराव की घटनाएं बढ़ जाती हैं. राजधानी जयपुर के झालाना लेपर्ड रिजर्व ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है. पिछले साल यहां 41,077 पर्यटक तेंदुओं की एक झलक पाने पहुंचे. 

आमागढ़ लेपर्ड सफारी भी पीछे नहीं रही, जहां 12,204 पर्यटकों ने भ्रमण किया. अब नाहरगढ़ में तीसरी लेपर्ड सफारी की तैयारी चल रही है. यह सफारी क्षेत्र शोधार्थियों, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स और फिल्ममेकर्स की पसंद बन चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि कमजोर प्रे बेस, बढ़ती इंसानी घुसपैठ और सीमित रहवास के बावजूद तेंदुए खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढालते आ रहे हैं. यह उनके अद्भुत 'सेल्फ मैनेजमेंट' का प्रमाण है. फिर भी इन हालातों में इनकी सुरक्षा और दीर्घकालिक अस्तित्व की गारंटी नहीं दी जा सकती.

विशेषज्ञों का मानना है कि वन विभाग को जिलावार प्लानिंग करनी होगी. जल स्रोतों का निर्माण, प्रे बेस मजबूत करना, और बफर जोन में नियमित निगरानी जरूरी है. इसके लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर, तेंदुओं की मूवमेंट और मानव बस्तियों के नजदीकी इलाकों की पहचान कर विशेष रणनीति बनानी होगी. यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो गर्मियों में मानव-तेंदुआ संघर्ष और बढ़ सकता है. राजस्थान में तेंदुओं की उपस्थिति जैव विविधता का प्रमाण है, लेकिन अब समय आ गया है कि इनकी सुरक्षा के लिए ठोस, दीर्घकालिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाए. केवल पर्यटन नहीं, तेंदुओं के लिए सुरक्षित और स्थायी आवास तैयार करना अब सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.