जयपुर: जयपुर स्थित नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से आई एक संवेदनशील और चौंकाने वाली घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या इंसानी दखल वन्यजीवों की स्वाभाविक जीवन प्रक्रिया को कुचल रहा है? शेरनी ‘तारा’ के साथ जो कुछ हुआ, वह न केवल वन्यजीव संरक्षण के सिद्धांतों पर सवाल उठाता है, बल्कि नैतिकता और विज्ञान के प्रयोग की सीमाओं को भी लांघता प्रतीत होता है.
14 अक्टूबर 2024 को तारा ने एक नर शावक ‘शेरू’ को जन्म दिया. प्रसव के मात्र दो घंटे बाद वन्य अधिकारियों ने तारा के स्वभाव को "आक्रामक" बताते हुए शावक को उससे अलग कर दिया. शेरू को नियोनेटेल यूनिट में रखा गया, जहां उसकी देखभाल की गई और एक सॉफ्ट डमी शेरनी रखकर उसे मां की उपस्थिति का एहसास कराया गया. यह प्रयोग एक ओर मां की भूमिका और शावक के बीच भावनात्मक संबंध की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है, तो दूसरी ओर यहीं से एक गहरी त्रासदी की शुरुआत भी होती है. अभी तारा का पहला शावक मात्र दो महीने का ही था कि वन विभाग ने उसे फिर से प्रजनन प्रक्रिया में झोंक दिया. दिसंबर 2024 में, यानी पहले प्रसव के दो महीने बाद ही, तारा की मेटिंग नर शेर ‘शक्ति’ से करवा दी गई. यह जानते हुए भी कि किसी भी शेरनी का प्राकृतिक तौर पर मेटिंग चक्र तब तक दोबारा शुरू नहीं होता जब तक वह 1.5 से 2 वर्ष तक अपने शावकों की परवरिश न कर ले. यही नहीं, शेरनी की गर्भावस्था की सामान्य अवधि लगभग 110 दिन होती है, लेकिन तारा ने दूसरी बार मात्र 6 महीने 21 दिन में दो और शावकों को जन्म दिया.
दुर्भाग्य से, दोनों नवजात शावक महज सात दिन में ही दम तोड़ गए. आज, दूसरे शावक का भी अंतिम संस्कार कर दिया गया. ये दोनों मौतें केवल शेरनी के मातृत्व सुख को ही नहीं छीन ले गईं, बल्कि वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल भी खड़े कर गईं. सबसे अहम प्रश्न यह है कि कौनसे वैज्ञानिक आधार या पूर्व शोध को आधार बनाकर प्रसव के दो महीने बाद ही तारा की मेटिंग करवाई गई? क्या विभाग ने किसी विशेषज्ञ पशु चिकित्सक या वन्यजीव जैवविज्ञानी की राय ली थी? क्या मां और पहले शावक के बीच संबंधों को जानबूझकर तोड़ा गया? तारा अब न केवल दो नवजातों की मां बनकर उन्हें खो चुकी है, बल्कि संभवतः मानसिक रूप से भी अत्यधिक तनाव और अवसाद का शिकार बन गई है. यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वन्यजीवों की प्रजनन प्रक्रिया में अत्यधिक हस्तक्षेप वास्तव में उनके हित में है या केवल मानवीय प्रयोग और आकड़ों की पूर्ति का माध्यम बन चुका है? नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क की यह घटना वन्यजीव संरक्षण नीति और उसकी नैतिकता पर गहन समीक्षा की मांग करती है. यह आवश्यक है कि वन विभाग इन सवालों का जवाब दे, ताकि भविष्य में किसी अन्य शेरनी को मातृत्व के इस अमूल्य सुख से यूं जबरन वंचित न किया जाए.