VIDEO: रणथंभौर में बाघ के हमले में 7 साल के मासूम की मौत, इंसान और वन्यजीवों के बीच संघर्ष फिर हुआ उजागर, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर : रणथंभौर नेशनल पार्क, जो कभी शाही शिकारगाह के रूप में जाना जाता था और अब बाघों के संरक्षण की मिसाल बन चुका है.. एक बार फिर इंसान और वन्यजीव संघर्ष का गवाह बना. बुधवार को एक 7 वर्षीय मासूम की बाघ के हमले में मौत हो गई. यह घटना त्रिनेत्र गणेश मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर हुई, जहां हर बुधवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. हादसे ने न केवल सुरक्षा व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि यहां आस्था और वन्यजीवों के बीच संतुलन अब बेहद जरूरी हो गया है. 

रणथंभौर का इतिहास गौरवशाली रहा है. कभी यहां के जंगलों में शिकार को राजा-महाराजा आते थे, लेकिन 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया. आज रणथंभौर में 71 बाघ, बाघिन और सब एडल्ट शावक हैं, जिनमें 24 बाघ, 24 बाघिन और 23 सबएडल्ट शामिल हैं. इनमें से करीब 25 बाघ पहले 5 जोनों- जो कि 'क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट' माने जाते हैं-में सक्रिय हैं. इन क्षेत्रों में मलिक तालाब, राजबाग और पदम तालाब जैसी प्राकृतिक जल स्रोतों के कारण अधिकांश वाइल्डलाइफ मूवमेंट होता है. यहीं पर श्रद्धालुओं का रास्ता भी त्रिनेत्र गणेश मंदिर तक जाता है. बाघों की गतिविधि वाले क्षेत्र से होकर श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में पदयात्राएं और निजी वाहनों की आवाजाही होती है, जिससे टकराव की संभावना बनी रहती है.

रणथंभौर के इन पांच जोनों में 11 गांव बसे हैं- रामसिंहपुरा, बडलाव, माधोसिंहपुरा, शेरपुर, खिलचीपुर, खवा गांव, खंडोज, उलियाना, कुतलपुरा रावल और कुंडेरा. इन गांवों में करीब 2500 परिवार रहते हैं और अभी तक ये पूरी तरह विस्थापित नहीं हो सके हैं. पिछले तीन दशकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष में 20 लोगों की जान जा चुकी है. बीते दो वर्षों में आधा दर्जन से ज्यादा हमले हो चुके हैं, और ताजा घटना ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक यह जोखिम यूं ही बना रहेगा? रणथंभौर में आस्था और रोमांच का हमेशा से एक खास रिश्ता रहा है. लेकिन अब जरूरी है कि आस्था में जोश नहीं, बल्कि भावनात्मक समझ और सुरक्षा की भावना प्राथमिकता पाए. 

त्रिनेत्र गणेश मंदिर तक जाने वाले मार्ग को पूरी तरह सुरक्षित बनाना होगा. नेशनल पार्क में वन्यजीवों का स्वच्छंद विचरण न तो रोका जा सकता है और न ही इसे तर्कसंगत कहा जा सकता है. ऐसे में जरूरी है कि श्रद्धालुओं को लाने-ले जाने के लिए सुरक्षित शटल और कैंटर सेवाएं शुरू की जाएं, खासकर ऐसे कैंटर जो जोन के रोस्टर से बाहर हों. इसके साथ ही पदयात्रा, दुपहिया वाहन और निजी गाड़ियों की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. जोगी महल गेट से त्रिनेत्र मंदिर तक के मार्ग पर विशेष तौर पर बुधवार और मेलों के दौरान वनकर्मियों की तैनाती होनी चाहिए. मॉनिटरिंग को और मजबूत करने के लिए इस पूरे मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और टाइगर मूवमेंट की जानकारी देने के लिए मंद ध्वनि वाले हूटर लगाए जाएं. 

किले की क्षतिग्रस्त दीवारों की मरम्मत का जिम्मा पुरातत्व विभाग या वन विभाग को सौंपा जाए, ताकि हादसों से बचा जा सके. साथ ही, मंदिर ट्रस्ट, वन विभाग, पुलिस, प्रशासन और पुरातत्व विभाग की एक संयुक्त टीम गठित की जानी चाहिए जो सुरक्षा, मॉनिटरिंग और व्यवस्थाओं का समय-समय पर निरीक्षण करे. इस घटना ने यह भी रेखांकित किया है कि रणथंभौर में बाघों के लिंगानुपात और उनके क्षेत्रफल के अनुसार संतुलन पर भी ध्यान देना जरूरी है. अगर जल्द प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो इंसान और बाघ दोनों की सुरक्षा खतरे में बनी रहेगी. 

 

रणथंभौर न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में बाघों के संरक्षण की एक मिसाल माना जाता है. लेकिन अगर यहां इंसानी गतिविधियों और बाघों के मूवमेंट के बीच समन्वय नहीं बना, तो ये गौरवशाली पहचान संकट में पड़ सकती है. इसलिए अब वक्त है कि आस्था, संरक्षण और सुरक्षा-इन तीनों के बीच संतुलन बनाते हुए रणथंभौर को एक सुरक्षित और संरक्षित मॉडल के रूप में फिर से स्थापित किया जाए.